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Karnataka High Court: मस्जिद में ‘जय श्री राम’ के नारे लगाना अपराध नहीं, कर्नाटक हाई कोर्ट का अहम फैसला

Karnataka High Court ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया जिसमें मस्जिद के अंदर ‘जय श्री राम’ के नारे लगाने के आरोप में दर्ज आपराधिक मामले को खारिज कर दिया गया। इस फैसले में अदालत ने कहा कि मस्जिद के भीतर ‘जय श्री राम’ के नारे लगाना अपराध की श्रेणी में नहीं आता और यह धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाला कृत्य नहीं है। अदालत ने स्पष्ट किया कि इस प्रकार के नारों से किसी भी समुदाय की धार्मिक भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाई जा सकती है।

मामला क्या था?

यह मामला 24 सितंबर 2023 की रात का है जब आरोपियों पर मस्जिद के अंदर जाकर ‘जय श्री राम’ के नारे लगाने और धमकी देने का आरोप लगाया गया था। इसके बाद पुलिस ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की विभिन्न धाराओं के तहत आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज किया। आईपीसी की धारा 295A (धार्मिक भावनाओं को आहत करने) के अलावा, उन पर धारा 447 (आपराधिक अतिक्रमण), धारा 505 (सार्वजनिक शरारत के लिए बयान देना), धारा 506 (आपराधिक धमकी) और धारा 34 (समान इरादे) के तहत मामले दर्ज किए गए थे।

Karnataka High Court: मस्जिद में 'जय श्री राम' के नारे लगाना अपराध नहीं: कर्नाटक हाई कोर्ट का अहम फैसला

हाई कोर्ट का फैसला

कर्नाटक हाई कोर्ट में जस्टिस एम. नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने इस मामले में सुनवाई करते हुए आरोपियों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों को खारिज कर दिया। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि ‘जय श्री राम’ के नारे लगाने से किसी भी धर्म विशेष की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचती और न ही यह कृत्य धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाला है। अदालत ने यह भी कहा कि इस तरह के नारे किसी समुदाय विशेष के प्रति घृणा या हिंसा को भड़काने के इरादे से नहीं लगाए गए थे।

धार्मिक भावनाएं आहत नहीं हुईं

अदालत ने अपने फैसले में कहा कि ‘जय श्री राम’ के नारे धार्मिक उन्माद फैलाने का माध्यम नहीं हो सकते। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि यह समझ से परे है कि इन नारों से किसी समुदाय की धार्मिक भावनाएं आहत कैसे हो सकती हैं। आरोपियों ने अपनी याचिका में बताया था कि वे किसी धार्मिक स्थान का अनादर करने के इरादे से वहां नहीं गए थे, बल्कि यह मामला सामूहिक धार्मिक उन्माद से जुड़ा नहीं था।

अदालत ने कहा कि यह मामला धार्मिक सहिष्णुता और सामुदायिक सौहार्द से जुड़ा हुआ है, क्योंकि संबंधित क्षेत्र में हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लोग शांति और भाईचारे के साथ रहते हैं। अदालत ने मामले के संदर्भ में यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व के आदेशों का हवाला देते हुए हर कृत्य को आईपीसी की धारा 295A के अंतर्गत अपराध नहीं माना जा सकता।

पुलिस का आरोप

पुलिस ने आरोपियों पर आरोप लगाया था कि उन्होंने रात में मस्जिद में प्रवेश कर ‘जय श्री राम’ के नारे लगाए थे और लोगों को धमकाया था। पुलिस ने मामले की शिकायत दर्ज कर आरोपियों को अज्ञात व्यक्तियों के रूप में दिखाया था और बाद में उन्हें हिरासत में लिया गया था।

अदालत ने क्यों खारिज किया मामला?

आरोपियों ने कर्नाटक हाई कोर्ट में इस मामले को चुनौती दी और अदालत से अपील की कि उनके खिलाफ दर्ज मामला निराधार है और इसे खारिज किया जाना चाहिए। अदालत ने इस मामले में आरोपियों के पक्ष को सुना और पाया कि मामले में धार्मिक उन्माद या सामुदायिक सौहार्द बिगाड़ने का कोई ठोस प्रमाण नहीं है। न्यायालय ने यह भी कहा कि जब क्षेत्र में हिंदू और मुस्लिम समुदाय के बीच अच्छे संबंध हैं और दोनों समुदाय शांति से रहते हैं, तो ऐसे मामलों में अनावश्यक रूप से कानूनी कार्रवाई करना कानून के दुरुपयोग के समान होगा।

अदालत की टिप्पणियाँ

जस्टिस एम. नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने कहा कि आरोपियों के खिलाफ आगे की कानूनी कार्रवाई कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि ‘जय श्री राम’ का नारा धार्मिक उन्माद भड़काने का कोई सबूत नहीं है।

अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि हर तरह का कृत्य आईपीसी की धारा 295A के तहत अपराध की श्रेणी में नहीं आता। धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आरोप तभी सिद्ध होते हैं जब कोई कृत्य जानबूझकर किसी धर्म या समुदाय के प्रति घृणा फैलाने के उद्देश्य से किया गया हो। इस मामले में ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिला, जिससे यह साबित हो कि आरोपियों ने धार्मिक भावनाओं को आहत करने का इरादा रखा था।

धार्मिक सौहार्द और न्याय की जीत

यह फैसला देश में धार्मिक सौहार्द और न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा सकता है। कर्नाटक हाई कोर्ट के इस फैसले ने एक बार फिर यह स्पष्ट किया है कि धार्मिक नारों को घृणा और हिंसा फैलाने के साधन के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। अदालत ने यह भी बताया कि ऐसे मामलों में सावधानीपूर्वक कानूनी प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए ताकि कानून का दुरुपयोग न हो और न्याय की प्रक्रिया सुदृढ़ हो सके।

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